मंगलवार, 15 जनवरी 2013

"विकास या विनास ! किस ओर बढ़ रहा हें सिंगरौली "

सिंगरौली ,प्रकृति के वरदानो से अचादित  प्राकतिक सम्पदा  से परिपूर्ण ऋसीयो  की तपोस्थली वन सम्पदा व वन्य जीवो का घर सिंगरौली अपने नये रूप में  आप सभी के सामने आ रहा हॆ। अब यह अपनी पुरानी पहचान से अलग एक ओद्योगिक दीप के रूप में अपनी  नयी  पहचान स्थापित करता जा रहा हे विश्व पटल  पर यह "ऊर्जाधानी "  के नाम से जाना जाने लगा हे ।कोयले के विशाल भंडार यहाँ ज़मी की गोद में संचित हॆ ,राज्य शासन की नीत  के अनुसार सिंगरौली को नये जिले का अस्तित्व प्रदान करने के साथ ही यहाँ भारी निवेश इस ओर सकेत करता हें की प्रदेश का यह पुर्वोतरी भाग अब प्रदेश व देश का अभीन्य व प्रमुख ओधोगिक नगरी होगी । जिला बनने के साथ ही इस नगरी ने अपनी चाल ही बदल दी हे  जिले में कई विदुत ईकाईया  लगने  जा रही हे जिनके उत्पादन प्रारम्भ करने के साथ ही न केवल प्रदेश विदुत के मामले में आत्मनिर्भर हो जायेगा बल्की संभवतः विदुत प्रदाता भी बन जायेगा ।उद्योग लगने से अन्य कई लाभ  मिलने की संभावना हे  अभी तक पिछड़े व् आदिवासी जिले में इसकी  गिनती की जाती थी ;परन्तु अब यहाँ एजुकेशन मेडिकल व रोजगार के छेत्र में नये आयाम स्थापित होने  की संभावना हे । 
                                परन्तु विकास की इस अंधी आधी में यहाँ का किसान व वेरोजगार नवयुवक कही दूर किनारे किमक्र्त्य्व्य विमूढ़  खड़ा दिखायी देता हे वह अपना सब कुछ देकर भी संतोष से परिपूर्ण दीखाई देता हे  यह संतोष हे या उसकी असमर्थता इसका अनुमान दो नजरियों से लग सकता हे सरकारी नजरिये से यह पूरी  तरह से संतुष्ट हे , जबकी जनता के नजरिये में वह असमर्थ हे  नवयुवक रोजगार की उम्मीद लगाये हुए हे परन्तु उसकी यह उम्मीद पूरी होगी  लगता नहीं ! सरकार ने  विकास के नाम पर इनका सब कुछ इनसे  ले लिया ओर चंद रूपये इनकी छोली में डालकर अपना कर्तव्य पूरा कर चुकी हे  परन्तु  जिस  जमीन पर  इनकी पीढीया  जीवनयापन करती   आ रही हे क्या मुवावजे की राशि  कितनी पीढीयो तक इनका जीविकोपार्जन कर  पायगी यदि  सरकारउन्हें शिक्षा व् रोजगार क अवसर प्रदान नहीं करती तो शायद भविष्य में सिंगरौली देश का सिरमोर बन जाये परन्तु यहाँ का निवासी निर्धन व् अस्तिव विहीन हो जायेगा  अधोगिकरण के दुसरे पहलु पर  विचार करे तो बढ़ता प्रदुष ओधोगिक  दुर्घटनाओ का बढ़ता खतरा  विनास की और ले जाते हे ।            सिंगरौली की इस दशा को देख कर एक कवि की कुछ पक्तिया याद आ रही हे -                                                                            
                                          " क्या करोगे तुम अगर विज्ञानं ने 
                                           डर को और भी घनेरा कर  दिया 
                                           क्या करोगे तुम अगर हद से बढी 
                                           रोशनी ने ही अधेरा कर  दिया ।।"
                                                    
  इसलिय सरकार को चहिये की यहाँ के निवासियों की ओर ध्यान दे ओर उनकी समस्याओ को सुने ओर उसका समाधान करे  रोजगार की समुचित व्यवस्था करे तभी विकास की अवधारणा सही होगी वरना-
                          
                                          " क्या करेगे चन्द्रमा का वह देश हम 
                                           जो अगन लगता हमारे पॉव को 
                                           क्या करेगे आकाश की वह राह हम 
                                           जो न जाती हो हमारे गाव को ।।"
                                          
                                                                                                                      आपका मित्र
                                                                                                                      मनीष द्विवेदी 

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